Blogvani.com
Blogvani.com

मंगलवार, 29 जून 2010

प्रेम: पारंपरिक सोच बदलने की जरुरत

                                                                                                                            -राज वाल्मीकि
झूठी शान के लिए अपनी ही सन्तानों का खून अब दिल्ली (देश की राजधानी) में भी होने लगे हैं। प्रेमी युगल की हत्याएं अब आम होती जा रही हैं। निश्चित रूप से इस पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है।



यह तो सभी जानते और मानते हैं कि स्त्री-पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण स्वाभाविक व प्राकृतिक है। यह आकर्षण और इसका परिपक्व रूप प्रेम सदियों से रहा है आज भी है और हमेशा रहेगा। इसमें कोई नई बात नहीं है। विपरीत लिंग का किसी व्यक्ति विशेष के प्रति शारीरिक आकर्षण के साथ मानसिक लगाव/पसन्द को प्रेम कह सकते हैं। यों मैं कोई प्रेम विशेषज्ञ नहीं हूं। प्रेम की परिभाषा लोग अपनी-अपनी तर से तय कर सकते हैं। पर मेरी चिन्ता का विषय इसी प्रेम से संबंधित है। यहां यह भी स्पष्ट कर दूं कि मेरा आशय एक तरफा प्रेम से नहीं है। जिस तरह की घटनाएं आज हो रही हैं कि किसी लड़के को किसी लड़की से प्रेम हो गया। लड़की ने उसके प्रेम को स्वीकार नहीं किया तो उसने उसके उपर तेजाब फेंक दिया। मकसद यही कि मेरी नही तो किसी की नहीं। यह प्रेम कदापि नहीं हैं। यह तो सामंतवादी सोच है जिसमें अधिकार का भाव रहता है और दूसरे को अपने अधीन समझने की प्रवृति। मेरा तात्पर्य ऐसे प्रेम से भी नहीं है कि जिसके नाम पर कोई अपने विपरीत लिंगी का शोषण करे। यह तो स्वार्थ है।



मेरा आशय उस प्रेम से है जिसमें कुंआरे लड़का-लड़की एक दूसरे से सच्चा प्रेम करते हैं और उसकी परिणति विवाह में चाहते हैं। पर समाज विशेषकर हिन्दू समाज की परम्परावादी सोच के कारण उनका प्रेम अंजाम तक नहीं पहुंच पाता बल्कि परिणाम उनमें से किसी एक अथवा दोनों की हत्या या आत्महत्या से होता है। इस तरह के कई उदाहरण हमें अपने आस-पास देखने को मिलते हैं। समाचारपत्रों में भी हम इस तरह की घटनाएं पढ़ते हैं। कुछ उदाहरण देखिए:- ‘प्रेमी से शादी की तो बेटी को मार डाला’ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में प्रेमी से शादी करने की सजा लोनी में एक बार फिर दोहरा दी गई। मनपसन्द युवक से शादी करने पर हारुन नाम के व्यक्ति ने बेटी परवीन को मौत के घाट उतार दिया।(18 जनवरी 2010, नई दुनिया) ‘अपने ही गोत्र में शादी करने के कारण खाना पड़ा जहर, युवक की मौत, प्रेम प्रसंग के चलते हरिद्वार में शादी करने के बाद मुज्जफर नगर आकर परिजनो के सामने प्रेमिका बनी पत्नी सुदेश और प्रेमी अलकेश ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। एक ही गोत्र के होने के कारण उनके परिजन उनके विवाह के खिलाफ थे। (राष्ट्रीय सहारा, 4 जनवरी 2010)।

‘इज्जत की खातिर बेटी का कत्ल’ गुड़गांवा के पातली हाजीपुर में प्रेमी के संग भागी युवती के परिजनो ने ही मौत के घाट उतार कर उसका अंतिम संस्कार रात में ही कर दिया। गांव पातली के ही मुनेश नामक युवक के साथ 24 दिसम्बर 2009 को उनके लौट आने के बाद दोनों परिवारों मे समझौता हो गया था। लेकिन लड़की के परिजनों का गुस्सा कम नहीं हुआ और उन्होने इज्जत के नाम पर अपनी ही बेटी को मौत की नींद सुला दिया। (राष्ट्रीय सहारा, 29 दिसम्बर 2009)। इसी तरह नरेला निवासी हेमराज (50) ने अपनी बेटी के प्रेमी की हत्या कर उसके शव को जला दिया। कारण यह था कि उसकी बेटी का प्रेमी उसकी जाति से नहीं था। इसलिए उसने इसे इज्जत का सवाल बना लिया और बदला लेने के लिए उसकी हत्या कर दी। (हिन्दुस्तान टाईम्स 26 दिसम्बर 2009)। पच्चीस दिसम्बर 2009 को राष्ट्रीय सहारा की खबर है ‘प्यार पर फिर चली जात की तलवार’ अन्तरजातीय विवाह करने वाले प्रेमी जोड़े को किया अलग। साहिबाबाद के गौरव सैनी और मोनिका डागर दोनों बालिग थे और पिछले दो साल से दूसरे से प्रेम करते थे। उन्होंने आर्य समाज मन्दिर में शादी की थी। पर दोनों के बीच जाति भेद ‘खलनायक’ बनकर आया। गौरव सैनी जाति का है जबकि उसकी पत्नी जाट समुदाय से ताल्लुक रखती है। गौरव ने अदालत के आग्रह किया है कि शादी का सबूत देने के बावजूद उत्तर प्रदेश पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया और उसका और उसकी पत्नी को उसकी मर्जी के बिना उसके भाई के हवाले कर दिया, लिहाजा पुलिस के खिलाफ भी कार्रवाई की जाए। इसी प्रकार एक ही गोत्र में शादी करने के कारण एक व्यक्ति की हत्या कर दी गई। हरियाणा के सोनीपत जिले के महारा गांव के रहने वाले चार लोगो को पुलिस ने गिरफ्तार किया जिनके नाम दयाल सिह (50) संदीप (25), पवन (19), इन्द्रजीत (19)। कारण था कि वीरेन्द्र नामक युवक ने अपने ही गोत्र की लड़की से प्यार कर शादी की। इसके लिए न केवल युवक की हत्या की गई बल्कि युवती से उसके चचेरे भाईयों ने ही बलात्कार किया।(हिन्दुस्तान टाईम्स, 28 अक्टूबर 2009)। ग्रेटर नोएडा के सूरजपुर में चेचेरे भाईयों द्वारा उनकी दो बहनों की हत्या का मामला भी प्रकाश में आया था। उसकी चचेरी बहनों का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होने दो गरीब लड़को से प्यार किया था। लड़कियों के घरवालों को गरीब लड़को से प्यार करना नाकाबिल-बर्दाश्त था।



उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि युवा चाहे एक जाति के हों, एक गोत्र के हों या अलग-अलग जाति के हों, अमीर-गरीब हों, परम्परावादी समाज को उनका प्रेम करना बर्दाश्त नहीं है। आश्चर्य की बात है कि जिस संतान को वे इतने लाड़-प्यार से पालते-पोषते हैं, पढ़ाते-लिखाते हैं, उनके उज्जवल भविष्य का सपना देखते हैं। उन्हें तथाकथित गोत्र, जाति, सम्प्रदाय या अमीरी-गरीबी के नाम पर उनकी हत्या करने से भी नहीं हिचकते। यहां गौरतलब है कि जिस गोत्र या रक्त शुद्धता की बात करते हैं तो इतिहास गवाह है कि यहां के मूल निवासियों और बाहर से आए लोगों का समय-समय पर इतना मिश्रण हो चुका है कि रक्त शुद्धता की बात करना मूर्खता ही कहा जा सकता है। रही बात जाति की तो जाति का विभाजन खासकर हिन्दू समाज में जिस आधार पर किया गया या जिस पौराणिक सन्दर्भों मे किया गया उसका भी कोई तर्क नहीं है। हिन्दू मिथ ब्राह्मणों को ब्रह्म के मुख से, क्षत्रियों को भुजा से, वैश्यों को उदर से और शूद्रों को पैरों से उत्पन्न मानता है। लेकिन आप और हम जानते हैं कि इस तरह से किसी का जन्म नहीं हो सकता है। यह एक जैविक क्रिया है जिसमें स्त्री-पुरुष के संसर्ग से स्त्री के गर्भ धारण से ही सन्तान का जन्म होता है। फिर अतीत हो या वर्तमान स्त्री-पुरुष संबंध किसी जाति-विशेष के मोहताज नही होते। प्रकृति ने सिर्फ स्त्री और पुरुष बनाए है। हमारे यहां जातियों के विभाजन के बाद भी ऐसे प्रसंग मिलते हैं जिन में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य स्त्रियों के शूद्रों से शारीरिक संबंध रहे हैं और ब्राह्मणों, क्षत्रियों, वैश्यों ने शूद्र जाति की स्त्रियों से यौन संबंध स्थापित किए हैं। ऐसे में गोत्र और जाति की बात बेमानी हो जाती है। इसी प्रकार हिन्दू-मुसलमान-सिक्ख-ईसाईयों की स्थिति है। स्त्री-पुरुष संबंध किसी सम्प्रदाय के मोहताज नहीं होते। मुसलमानों, ईसाईयों, सिक्खो की स्त्रियों के हिन्दू पुरुषों से तथा हिन्दू स्त्रियों के उनसे यौन संबंध रहे हैं। फिर सम्प्रदाय या जाति को इज्जत का सवाल बनाना कहां की समझदारी है। यही बात अमीरी और गरीबी के बारे में कही जा सकती है। स्त्री-पुरुष संबंध एक प्राकृतिक आवश्यकता है। उसका अमीरी-गरीबी से कोई संबंध नहीं होता है।



कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे बच्चों या युवा लड़के-लड़कियों का प्रेम करना कोई गुनाह नहीं है। यह तो स्वाभाविक या प्राकृतिक है। पर इसे गोत्र-जाति-सम्प्रदाय के नाम पर इज्जत का सवाल बनाना और अपने ही बच्चों को घुट-घुटकर जीने पर विवश करना जैसे उन्होने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया अथवा उनकी जान ले लेना नासमझी और क्रूरता की पराकाष्ठा है। अब समय आ गया है कि हम अपनी पारंपरिक सोच बदल कर आज के सन्दर्भ में सोचें। हम निष्पक्ष होकर सोचें कि जब हम अपने बच्चों की उम्र में थे तब क्या हमारा मन किसी विपरीतलिंगी के प्रति आकर्षित नहीं होता था। क्या हम उसका गोत्र, जाति या सम्प्रदाय देखकर प्रेम करते थे। हमें तो वह इन्सान विशेष (लड़का या लड़की) पसन्द होता था। पर हमारे बुजुर्गों ने हमारे, हमारे माता-पिता ने हमें भी इस तरह के बंधनों की दुहाई दी थी और हमारा प्रेम घुट-घुट कर मरने पर विवश हुआ था। क्या हम वही पुरानी लीक पीटते रहें? क्या यह हमारे बच्चों के प्रति नाइंसाफी नहीं है? क्या हमें हमारा नजरिया बदलने की जरुरत नहीं है? क्या समझदारी इसमें नहीं लगती कि हम तथाकथित गोत्र, जाति, सम्प्रदाय और अमीरी-गरीबी से उपर उठकर अपने बच्चों की खुशियों को प्राथमिकता दें? उन्हें खुश देखकर हमें कितनी खुशी मिलती है, तो क्या उनकी खुशी के लिए हम जरा हटकर नहीं सोच सकते?



संपर्क: 9818482899

36/13 ग्राउण्ड फ्लोर

ईस्ट पटेल नगर,

नई दिल्ली-110008

2 टिप्‍पणियां: