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बुधवार, 9 जून 2010

करनी-कथनी

तन-मन-धन से कर रहे , हिन्दी का उत्थान


कान्वेन्ट में पढ़ रही औ, उनकी सन्तान

हिन्दी सेवा, कान्वेन्ट, अजब विरोधाभास

पूछा हमने इक प्रश्न जाकर उनके पास

करनी-कथनी में फर्क यह कैसा उत्थान?

हिन्दी सेवी हंस कहे, ‘ मूर्ख हैं श्रीमान!

लगता हाथी दांत पर नहीं किया है गौर

खाने के कुछ और हैं दिखलाने के और!

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