आखों पर पट्टी
-राज वाल्मीकि
मेरे गांव से कसबे तक और कसबे से गांव तक अब भी तांगे ही चलते हैं। मैं दिल्ली से अपने गांव जा रहा था। कसबे तक तो बस से आ गया। अब मैं तांगे की तलाष में इधर-उधर देख रहा था। कानों में लाउडस्पीकर की तेज आवाज सुनाई दे रही थी। आस-पास कहीं सत्संग हो रहा था। आम आदमी की नजर में पूज्यनीय गुरुदेव का प्रवचन जारी था। ‘‘...भक्तजनों, गुरु के बिना ज्ञान नहीं होता। परमात्मा के दर्षन नहीं होते। अतः गुरु के वचनों को ईश्वर के वचन मानकर उनका पालन पूरी श्रद्धा से करना चाहिए।...’’ गुरुदेव निरन्तर बोले जा रहे थे। ‘‘...भक्तजनों ईश्वर ने हमारे लिए सर्वोत्तम समाज व्यवस्था दी है। पिछले जन्मों के आधार पर लोगों को विभिन्न जातियों में जन्म दिया है। पिछले जन्मों के कर्मों का फल इस जन्म में मिलता है और इस जन्म का अगले जन्म में। पिछले जन्म में जिन लोगों ने अच्छे कर्म किए ईश्वर ने उन्हें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य बनाया। जिन्होने पाप किए उन्हें शूद्र बनाया। भंगी, चमार, महार, मातंग इत्यादि बनाया। ईश्वर ने उन्हे तीनों उच्च जातियों की सेवा करने का कार्य सौंपा है। यदि वे इस जन्म में भली भांति सेवा कार्य करेंगे तो उनका अगला जन्म सफल हो जाएगा। अतः उन्हें पूर्ण समर्पित भाव से ब्राह्मण, क्षत्रियों, वैश्यों की सेवा करनी चाहिए।
मुझे एक तांगे वाला दिखाई दिया। मैं उसके तांगे में बैठ गया। मैंने देखा उसके घोड़े की आंखों पर चमड़े की पट्टी बंधी हुई थी। मैंने तांगे वाले से पूछा - ‘‘आपने इस की आंखों पर ये पट्टी क्यों बांध रखी है?’’ उसने बताया - ‘‘ भाई साहब, आप जानते ही हैं कि घोड़ा एक मजबूत जानवर होता है। श्रम करने में इसका कोई जवाब नहीं। इसे नियन्त्रित करने के लिए इसकी आंखों पर पट्टी बांधते हैं। इस पट्टी की वजह से घोड़े को सिर्फ सामने का दिखाई देता है। इधर-उधर का नहीं। इसलिए इसे जिधर हम मोड़ते हैं ये उसी ओर चल पड़ता है। अगर ये पट्टी नहीं हो तो ये अपनी मरजी से किसी भी तरफ जा सकता है। फिर ये हमारी गुलामी थोड़े ही करेगा। वैसे ये कोई नई बात नहीं है। सदियों से लोग घोड़े की आंखो पर पट्टी बांधते आ रहे हैं।...’’ तांगे वाला बोलता जा रहा था। मुझे अनायास ही गुरुदेव के प्रवचन याद आने लगे।
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bahut badhiya...............keep it up
जवाब देंहटाएंmukeshmanas