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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

किन्नर समाज का दर्द

हाशिए से
किन्नर समाज का दर्द
-राज वाल्मीकि
रानी महन्त (किन्नर) कहती हैं कि - ‘ मैंने बहुत से किन्नर इकट्ठे किए और रामलीला मैदान जाकर अन्ना हजारे का समर्थन किया। अन्ना हजारे को देखकर लगता है कि कोई तो है जो अपने बारे में न सोचकर जनता के बारे में सोचता है। उसकी भलाई के लिए अन्शन रखता है। जब वह हमारी भलाई के लिए, भ्रष्टाचार मिटाने के लिए इतना कर रहे हैं तो हमें भी उनका साथ देना चाहिए।’ वे कहती हैं कि हम किन्नरों में बहुत इंसानियत होती है। अधिकांश औरतों-मर्दों को देखकर हैरानी होती है कि वे अपने स्वार्थ में ही लिप्त रहते हैं। दूसरों का दुख नहीं बांटते। वे अपने बारे में बताती हैं कि ‘कई बार मैंने बेसहारों को सहारा दिया है। सड़क पर घायल पड़े लोगों को अस्पताल पहुंचाया है। अपनी जेब से डॉक्टरों की फीस भरी है। पर यह देखकर दुख होता है कि समाज हमें ऐसी नजरों से देखता है  जैसे हम किसी दूसरे ग्रह के प्राणी हों। लोगों की नजरों में हमारे प्रति उपहास होता है। वे हमें हिकारत से देखते हैं। हमें मनोरंजन की वस्तु समझते हैं।’ रानी आगे कहती हैं कि ‘आप मेरी इस बात पर यकीन न करें तो बस्ती में जाकर पूछ लीजिए। मैं  दुख-सुख में सबके काम आती हूं। मेरे मन में जनहित की भावना है।’ ये पूछे जाने पर कि ‘यदि आपको टिकट मिल जाए तो आप  निगम पार्षद का चुनाव लड़ना चाहेंगी?’ वे कहती हैं ‘जरूर’। और अगर बस्ती वालों ने मुझे जिता दिया तो मैं इस बस्ती का कायाकल्प कर दूंगी। झुग्गियां नहीं तोड़ने दूंगी। इन्हें अधिकृत कराउंगी। अपना कर्तव्य  ईमानदारी से निभाउंगी। वैसे भी समाज सेवा करती रहती हूं। मैंने एड्स के प्रति जागरूकता के लिए
आवाज उठाई है। मैं चाहती हूं कि  किन्नरों का भी इलेक्शन में कोटा होना चाहिए। हम किन्नर जबान के पक्केे होते हैं। सबसे पहले तो मैं यहां स्कूल खुलवाउंगीं। क्योंकि इस बस्ती में एक भी स्कूल नहीं है। दूसरी महिलाओं के लिए डिस्पेंसरी, छोटे बच्चों के लिए आंगनबाड़ी। कच्ची गलियों को पक्का करवाउंगी।’ मेरे यह पूछने पर कि क्या बच्चों की बधाई मांगने से आपका गुजारा हो जाता है? वे कहती हैं कि हमारे इलाके बंटे होते हैं।
रानी महन्त   जैसे एक थाने के अन्तर्गत जितना क्षेत्र होता है वह उस क्षेत्र विशेष में रहने वाले किन्नर समुदाय का होता है। उस क्षेत्र में बच्चों की बधाई के अलावा शादी-विवाह में भी हम अपना हक लेते हैं। इस से गुजारा हो जाता है। पर हमारे लिए पेट भरना ही काफी नहीं है। पेट तो जानवर भी भर लेतेे हैं। हम चाहते हैं कि हम भी इन्सान हैं। हमारी भी इज्जत है। लोग हमारे प्रति अपनी सोच बदलें। हमें इन्सान समझें। हमारा मजाक न उड़ाएं। किन्नर समुदाय के बारे में पूछने पर उन्होेंने बताया कि हमारा समाज चार भागों में बंटा होता है। ये हैं - 1.राय वाले 2.सुजानी 3.मण्डी वाले और 4. लश्करिया। उनसे यह पूछने पर कि कुछ किन्नर सड़कों पर या बसों में भी पैसा मांगते हैं। इसके बारे में आपका क्या कहना है? इस पर वे कहती हैं  कि असल में वे किन्नर नहीं हैं। किन्नर कभी इस तरह सड़कों और बसों में पैसे नहीं मांगते। हमारे भी गुरू होते हैं और वे कभी इस तरह पैसा कमाने का आदेश नहीं देते।’


 
अम्बालिका
 उनके पास एक सतरह-अठारह साल की किन्नर बैठी हुई थी। मैंने उसके बारे में पूछा  तो उन्होने बताया कि इसका नाम अम्बालिका सिंह राठौर है। ये लखनऊ की है। तीन साल की उम्र में मुझे ये लखनऊ रेलवे स्टेशन पर चाय वाले की दुकान के पास लावारिश मिली। मैं इसे अपने साथ दिल्ली ले आई। मैंने ही इसकी तब से परवरिश की है। आप चाहें तो इससे भी पूछ सकते हैं। मैंने उसे अपने बारे मे बताने को कहा तो वह बोली-‘ मैं अठारह साल की हूं। दिल्ली यूनिवर्सिटी में बी.ए.सेकेण्ड ईअर की छात्रा हूं। रानी जी ने मुझे बचपन से पाला-पोष कर बड़ा किया है। पढ़ाया-लिखाया है। ये ही मेरी माता-पिता हैं। मैं इन्हीं के साथ यहां ब्छ.115 टाली वाली बस्ती, गली नं.10 , आनन्द पर्वत में रहती हूं। किन्नर समाज में मुश्किल से 10 प्रतिशत लोग पढ़े लिखे हैं। मैं अपनी गुरू रानी जी की आभारी हूं कि वे मुझे उच्च शिक्षा दिला रही हैं।’ ये पूछने पर कि पढ़ाई के दौरान कोई परेशानी होती है? तो अम्बालिका बताती है कि लड़के हमें छेड़ते हैं। ‘हिजड़ा’ कहकर हमारा मजाक बनाते हैं। तब मैं सोचती हूं कि जब ये पढ़े-लिखेे, शिक्षित और सभ्य कहे जाने वाले लोग हमारा मजाक उड़ा रहे हैं तो आम लोगों से क्या उम्मीद की जाए। कब बदलेंगे ये लोग हमारे प्रति अपनी सोच। उससे यह पूछने पर कि क्या आप सरकार से कुछ अपेक्षा रखती हैं तो वह कहती है ‘हम भी इस देश के नागरिक हैं। सरकार जिस प्रकार की सुविधाएं विक्लांग लोगों को देती है वैसी ही हमें दे। नौकरियों मे किन्नरों का अलग आरक्षित कोटा होना चाहिए। एजूकेशन मे फीस कम होनी चाहिए। एडमिशन में ैब्ध्ैज्ध्व्ठब् की तरह सुविधाएं मिलनी चाहिए। अम्बालिका से ये पूछने पर कि क्या आप चाहती हैं कि आपकी शादी हो? वह कुछ शरमाते हुए कहती है कि उसे अच्छा लगेगा कि कोई मर्द उससे शादी करे। एक बच्चा गोद लेलें और हम पति-पत्नी की तरह एक अच्छी जिन्दगी जिएं।’ यह कहती हुई वह चाय बनाने चली जाती है।
हम रानी जी से मुखातिब हुए। आप किन्नर समाज के बारे में कुछ और बताईए। इस पर वे कहती हैं कि किन्नर समाज परम्पराप्रिय है। इसलिए अभी कोई खास परिवर्तन नहीं आया है। शिक्षा का अभाव है। किन्नरों को पॉश कॉलोनियों से अच्छा पैसा मिल जाता है। गुरू के रूप में मैं कहती हूं कि किसी गरीब को ज्यादा न सताएं। उनके आगे नंगे न हों। मेरी गुरू पुष्पा है जो 108 साल की हैं। हम लोग गुरू का बहुत आदर करती हैं। गुरू की आज्ञाकारी होती हैं। उनकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं  करतीं। हमारे डेरा होते हैं। जहां किसी भी जगह का किन्नर आकर रूक सकता है -अपने घर की तरह। मेरी एक किन्नर सहेली तमन्ना है जो लक्ष्मीनगर में रहती है। वह चांदनी हाजी की चेली है। मेरे यह पूछने पर कि  सरकार आपको कोई सुविधा देती है? या सरकार से आप कोई अपेक्षा रखती हैं? तो वे कहती हैं कि सरकार हमें कोई सुविधा नहीं देती है। मैं चाहती हूं कि जिस तरह रेलगाड़ी में महिलाओं के लिए कोच होते हैं उसी तरह किन्नरों का भी एक डिब्बा हो। इन्दिरा आवास की तरह हम लोगों को भी आवास की सुविधा मिले। किन्नरों को वृद्धावस्था पेंशन मिले।...’ उनकी बातों को सुनकर उनकी मांगे जायज लगती हैं। पर क्या सरकार इन पर तभी ध्यान देगी जब इनके लिए कोई अन्ना हजारे आन्दोलन करेगा?
संपर्कः 9818482899, 36/13 ग्राउण्ड फ्लोर, ईस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली-110008

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