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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

औरत भए न मर्द


औरत भए न मर्द
-राज वाल्मीकि
‘मुन्नी बदनाम हुुई...’ गीत की धुन पर कुछ किन्नर मित्र के घर के बाहर थिरक रहे थे। उनके यहां पहला पोता हुआ था। इसी उपलक्ष्य में मित्र ने भोज पर मित्र मण्डली को आमंत्रित किया था। मैं निर्धारित समय पर उनके घर पहुंच गया। जैसा कि हमारे यहां आमतौर पर होता है कोई समय पर पहुचना पसन्द नहीं करता। कुछ इस तरह की धारणा है कि  जो समय पर पहुंचता है वह आम और देर से पहुंचने वाले को खास समझा जाता है। हमारे यहां समय के पाबंद या पंक्चुअल व्यक्ति को भोला या मूर्ख समझा जाता है भले ही लोग उसके मुंह पर उसकी तारीफ करें। आयोजक भी निमंत्रण पत्र में  अपने आयोजन के शुरू होने के वास्तविक समय से एकाध घंटे पहले का समय ही छपवाते हैं। लोग देर से ही पहंुचेंगे यह अन्डरस्टूड होता है।खैर। मित्र के घर पहुंचकर मैंने देखा कि वे कार्यक्रम के आयोजन में व्यस्त थे। मुझे उन्होने ड्रांईग रूम में बैठने को कहा। वहां अकेले बैठना मुझे असहज लगा। बााहर किन्नरों के नाचने-गाने की आवाजे ंआ रहीं थीं। सोचा, क्यों न चलकर किन्नरों की जिन्दगी में झांका जाए। अतः मैं उनसे बावस्ता हुआ। शुरू में तो उन्होने उपेक्षा भाव दिखाया। पर जब मैंने उनसे आत्मीयता से बात की तो थोड़े सहज हुए। उनसे पता चला कि वे लड़का पैदा होेने पर ज्यादा रकम वसूलते है - लड़की होने पर कम। स्पष्ट था कि वे पितृसत्तात्मक व्यवस्था के अभ्यस्त थे।
किन्नरों से बात करते समय मुझे अपने  बचपन में पढ़ी एक कवि (शायद द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी) की कविता की कुछ पंक्तियां अनायास याद आ गईं - ‘यदि होता किन्नर नरेश मैं, राजमहल में रहता, सोने का सिंहासन होता, सिर पर मुकुट चमकता।’लेकिन आज जब किन्नरों के बारे में सोच रहा हूं तो लगता है कि यह किसी बच्चे का यूटोपिया है या कवि की कल्पना। क्योंकि किन्नरों के राजा होने की आज तो कोई कल्पना भी नहीं कर सकता।  हमारे सामाजिक ढांचे में किन्नर समुदाय के प्रति कोई आदर भाव नहीं है। हिन्दी बेल्ट में आम बोलचाल की भाषा में उनके लिए ‘हिजड़ा’ कह कर संबोधित किया जाता है। यदि कोई मर्द के लिए इस  शब्द का प्रयोग करता है तो यह उसके लिए सबसे बड़ी गाली होती है। नाना पाटेकर का किसी फिल्म में बोला गया डायलोग बहुत लोकप्रिय हुआ था - ‘एक मच्छर आदमी को हिजड़ा बना देता है।’ इस वाक्य में समाज की किन्नर समुदाय के प्रति मानसिकता झलकती है। किन्नरों के साथ इस तरह का व्यवहार किया जाता है जैसे कि वे इन्सान ही न हों। किन्नरों ने मुझ से कहा कि ‘बाबूजी आपने हमे किन्नर कह कर पुकारा है नहीं तो लोग हमें हिजड़ा कहते हैं। हमें यह शब्द गाली की तरह लगता है। समाज हमारा अपमान करता है। हमारा मजाक बनाता है। पर हमारे दर्द को नहीं समझता। आप ही बताईए क्या हम इन्सान नहीं हैं?...’ उस किन्नर के ये शब्द मन को छू गये। मैं सोचने लगा कि जिस तरह हमारे यहां समाज व्यवस्था है उसमें आम इन्सान को भी कहां इन्सान समझा जाता है। जानवरों को पूजा जाता है पर उसे कीड़ों-मकोड़ों से भी बदतर स्थिति में रखा जाता है। दलितों को सदियों से ऐसा गुलाम समझा गया जिसका महत्व जानवरों जितना भी नहीं है। उसे अस्पृश्य माना गया। आज भी हमारे देश में मैला ढोने जैसी अमानवीय प्रथा प्रचलित है। क्या विडम्बना है कि एक इन्सान दूसरे का मल भी अपने हाथों से साफ करे और उसे ही अछूत समझा जाए! सीवर साफ करने वालों को क्या इन्सान समझा जाता है। अगर उन्हें इन्सान समझा जाता तो उनकी जिन्दगी इतनी सस्ती नहीं होती। सीवर की जहरीली गैस से सीवरकर्मियों की मौत की खबरें हम अखबारों में आए दिन पढ़ते रहते हैं। क्या एक ताकतवर इन्सान कमजोर को इन्सान समझता है। पूंजीपतियों के लिए महल बनाने वाले, कारखानों में वस्तुओं का उत्पादन कर उन्हें अमीर बनाने वाले, उनकी नजरों में कीड़े-मकोड़ों से भी गए-गुजरे होते हैं। उन्हें इन्सान कहां समझा जाता है। ऐसे में किन्नरों केे बारे में समाज का जो नजरिया है वह बेहद असंवेदनशील है। किन्नर  अपनी व्यथा बताये जा रहे थे। ‘एक तो भगवान ने ही हमें न जाने किस अपराध की सजा दी जो न औरत बनाया न मर्द। दूसरे समाज हमें हिकारत से देखता है। हमारा शोषण करता है। पुलिस, दबंग और रईसजादों के लड़के हमारा शारीरिक शोषण भी करते हैं। समाज में जाने पर बच्चे, जवान और बूढ़े सभी यह कहते हैं कि हिजड़ा आ गया। जैसे कोई इन्सान नहीं कोई अजूबा आ गया हो। तब हम पर क्या बीतती है, हम ही जानते हैं। हमें लोग मनोरंजन का साधन तो समझते हैं लेकिन इन्सान नहीं। हम भी इन्सान हैं। हमारा भी मान-सम्मान है। आखिर समाज हमें कब इन्सान समझेगा? कब बदलेगी हमारे प्रति समाज की सोच...?’ किन्नर अपनी बातें कहे जा रहे थे और मेरे जहन में कभी जोकर तो कभी यौनकर्मियों की तस्वीरें किन्नरों के साथ गड्डमड्ड हो रहीं थीं। तभी मित्र ने आवाज दी  मैं यन्त्रवत्-सा उठकर चल दिया। सच कहूं तो मेरे पास भी उनके सवालों के जवाब नहीं थे। मेरे मन में भी प्रश्न उठ रहे थे। किन्नर समुदाय हमारे समाज का ऐसा हिस्सा हैं जो न औरत हैं न मर्द। पर हमारा समाज कब बदलेगा उनके प्रति अपना नजरिया, कब समझेगा उनका दर्द?
संपर्क: 9818482899, 36/13 ग्राउण्ड फ्लोर, ईस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली-110008
तंरअंसउपाप71/हउंपसण्बवउ

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