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शुक्रवार, 28 मई 2010

दर्द दासता का गजल राज वाल्मीकि

दर्द दासता  का क्या होता मत मालिक से जाकर पूछ
सदिया गुजरीं सेवा करते हम लोगों से आकर पूछ

देवी रूप जहां नारी का उसका है यथार्थ क्या
तिहरा शोषण जिसका होता उस महिला से जाकर पूछ

नीरस जीवन, एकाकीपन, विधुरावस्था और बुढापा
तनहाई का दंश क्या है हम बूढों से आकर पूछ

स्वाभिमान से जीने की जिद कितनी मंहगी पडती है
हाथ कटें हैं जिन लोगों के उनको कभी बुलाकर पूछ

असर क्या होता है प्यारे जादू की इस झप्पी में
किसी दुखी को यार कभी तू दिल से गले लगाकर पूछ

स्वतन्त्रता, समता, न्याय, बंधुता कब तक बंदी रख पाओगे
राज कभी वो तुझे मिलें तो उनसे नजर मिलाकर पूछ

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