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शुक्रवार, 28 मई 2010

दोस्ती का ऐसा मंजर गजल राज वाल्मीकि

दोस्ती का ऐसा मंजर देखते हैं
दोस्तो के कर में खंजर देखते हैं

यहां कैसे उगें समता की फसलें
दिलों की भूमि बंजर देखते हैं

कफन के हैं वही घीसू और माधव
जमाने का वो अंतर देखते हैं

जहां मिलती हैं सब धर्मों की नदियां
वो भारत का समन्दर देखते हैं

भेडिये दिखते हैं हम को भेड मे क्यों
मुखौटों के जो अन्दर देखते हैं

किस तरह बंटता है इन्सा राज यहां पर
गुरूदवारे, चर्च, मस्जिद और मंदिर देखते हैं

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