गलत जो है सही है, अनैतिक कुछ नही है
बात ये जच रही है समय का सच नही है
मत बोलो कि जनता खुश नही है,यहां से देखो उसका दुख नही है
खुदा जाने ये कैसा तिलिस्म, व्यवस्था रच रही है
दलित की भी है इज्जत, है नारी की अस्मिता
उन्ही के सम है लेकिन उन्हें नही पच रही है
गरीबी डस रही है, मुफलिसी हंस रही है
गनीमत है कि फिर भी ये इज्जत बच रही है
उसे ऐसा दिखाया जा रहा है, नही ऐसी है जैसी दिख रही है
न जाने किन हाथों में होगी डोर इसकी, ये पुतली सामने जो नच रही है
है ये अंधी दौड़ कैसी, भीड़ को रौंद कर भी
आगे बढ़ रही है, ये भागमभाग कैसी मच रही है
समय का सच यही है
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