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सोमवार, 14 जून 2010

आम आदमी की अहमियत

                                                                                                                                      -राज वाल्मीकि

का बात कर रहे हैं भाई साहब! मंहगाई, बेरोजगारी,शोषण यह सब आम आदमी की नियति है, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। हम आप से सहमत नहीं हैं। मानाकि हम आम आदमी हैं इसका मतलब यह नहीं है कि कोई हमें आम की तरह चूसता रहे और हम चूसे जाते रहें। आप तो उन चन्द लोगों की भाषा बोल रहे हैं जो आम आदमी के प्रति ‘यूज एण्ड थ्रो’ की नीति अपनाते हैं। आप ये क्यों नहीं सोचते कि आम आदमी है इसलिए खास आदमी है। खास आदमी को खास बनाया किसने हैं? हमने आपने यानी आम आदमी ने। आम आदमी उस नींव की ईंटो की तरह है जिनके आधार पर खास आदमी की गगनचुंबी ईमारत खड़ी होती है। ईमारत के कंगूरे सब को दिखते हैं पर ये कंगूरे किस पर टिके हैं। जरा कल्पना कीजिए कि ये नींव धसक जाए तो? भाई साहब अहमियत उस नींव की है जिस पर सुन्दर ईमारत टिकी है। दरअसल आम आदमी ही है जिनके भरोसे ये खास आदमी इतरा रहे हैं।





आप हरियाणा के पूर्व डीजीपी एस.पी.एस. राठौर का उदाहरण मत दीजिए। हमें भी मालूम है कि टेनिस खिलाड़ी 14 वर्षीया मध्यवर्गीय रुचिका के यौन उत्पीड़न की घटना 1990 मे घटी थी और आज 19-20 वर्ष बाद राठौर को सिर्फ छह महीने की सजा सुनाई गई। हमें यह भी मालूम है कि राठौर ने अपने पालिटिकल पावर का इस्तेमाल कर रूचिका के परिवार को बरबाद कर दिया और रुचिका को आत्महत्या के लिए विवष। हमें ज्ञात है कि रुचिका का परिवार मध्यमवर्गीय था इसलिए यह छह महीनें की सजा की नौटंकी भी की गई। राठौर ने कितनी गरीब-मासूम लड़कियों का भी शोषण किया होगा इसका कहीं कोई हिसाब नहीं है। हमें यह भी मालूम है कि पावरफुल लोगों के लिए हमाऱी ऱक्षक पुलिस हमारी ही भ़क्षक बन जाती है।



हमें हमारी न्याय व्यवस्था के ढीली-ढाली और कमजोर होने का अहसास है। हमें मालूम है कि यहां आम आदमी को कितना न्याय मिल पाता है। हमें मालूम है कि तथाकथित ‘बड़े पावरफुल लोग’ आम आदमी को कीड़े-मकोड़े से अधिक नही समझते। पर भाई साहब यह तो आम सोच है और आम आदमी आपकी तरह यही सोच रहा है कि इस देष का कुछ नहीं हो सकता। इस व्यवस्था का कुछ नहीं हो सकता। भ्रष्टाचार नहीं मिट सकता। रिश्वतखोरी खत्म नहीं की जा सकती। मंहगाई नहीं मिट सकती। बेरोजगारी नहीं जा सकती। मुर्गी के दड़बों की तरह बने घरों में रहने वालों की नियति बदली नहीं जा सकती। सब कुछ जैसा चल रहा है वैसा ही चलेगा। यह परम्परावादी सोच आप पर ही नहीं आप जैसे बहतु से लोगों पर हावी है। पर इस परम्परावादी नजरिये को बदलिए। अपनी सोच का चश्मा बदल कर देखिए। कवि कह गया है कि ‘ कैसे आकाष में सूराख हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबियत से उछालों यारो।’ अफसोस की बात है कि हम अपनी ही खासियत से अनजान हैं।



अब तक आप वही देखते रहे हैं जो लोग आपको दिखाते रहे हैं। वहीं नकारा लोगों की नकारात्मक सोच। आप एक ही पहलू को देखने के आदी हो गये हैं। अब तस्वीर का दूसरा पहलू भी देखिए। पहली बात जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण है वह है अपनी नकरात्मक सोच को सकारात्मक सोच में बदलिए। इस देश में संविधान नाम की कोई चीज है। देश में एक लोकतांत्रिक व्यवस्था है। आम आदमी द्वारा आम आदमी की आम आदमी के लिए सरकार है। भले ही पावरफुल लोग इसे अपनी तरह यूज करते हों। कया कहा? न...न...न..., हम सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ रहे हैं। हमें भी मालूम है कि चुनाव के समय आमजन को बहला-फुसला कर, ललचाकर, शराब की बोतलें और गोश्त के टुकड़े, हरे-हरे नोटों का लालच दिखाकर किस तरह बरगलाकर वोट हथियाया जाता है। हमें मालूम है कि किस तरह वोटों की जोड़-तोड़ की जाती है। जाति के समीकरण बिठाये जाते हैं। मंहगाई घटाने और आम आदमियों को सारी सुविधाएं देने के लुभावने वादे किए जाते हैं। हर हाथ को काम देकर बेरोजगारी मिटाने के झूठे आशवासन दिए जाते हैं। और जीतने के बाद कौन-सा आम आदमी, कैसा आम आदमी। पहचानने से भी इन्कार किया जाता है। पर इससे आम आदमी की अहमियत कम नहीं हो जाती है।



आप यह पूछ रहे हैं कि आम आदमी क्या कर सकता है? सच में आप आम आदमी की ताकत से अनजान हैं। आम आदमी चाहे तो शोषणकर्ताओं के बड़े से बड़े साम्राज्य को धूल-धूसरित कर सकता है। बड़े-बड़े भ्रष्ट अधिकारियों, जमाखोरों, शोषणकर्ताओं को धूल चटा सकता है। भ्रष्ट पुलिस की वर्दी उतार सकता है। और नेताओं को सरेआम नंगा कर सकता है। जमाखोरों को, मंहगाई बढ़ाने वालों को दिन दहाड़े पीट सकता है। उन्हें सलाखों के पीछे पहुंचा सकता है। गलत तरीके से इस्तेमाल की गई आम आदमी की गाढ़ी कमाई से उनके एषो आराम के लिए बने कोठी-बंगलों को ध्वस्त कर सकता है और ये तथाकथित ‘बड़े आदमी’ आम आदमी का कुछ नहीं बिगाड़ सकते। आम आदमी जब अपनी पे आएगा तो इन शोषणकर्ताओं की ऐसी-तैसी कर जाएगा। आम आदमी का आक्रोश एक ऐसा ज्वालामुखी, एक ऐसा सैलाब या एक ऐसा सुनामी होगा जिसे रोकना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होगा। जो सब कुछ तबाह कर देगा। प्रलय ला देगा। आम आदमी का यह रूप बहुत विनाशक होगा। आपको पता होना चाहिए कि जिस पैसे के दम पर कोई ‘बड़ा आदमी’ बनता है। वह अन्ततः आम आदमी का ही पैसा होता है। कोई बिजनेस मैन आम आदमी के बलबूते ही बिजनेस में सफल होता है। उसका अधिकांष ग्राहक आम आदमी होता है। आम आदमी ही उसकी कंपनी में खटकर कम्पनी के उत्पाद का निर्माण करता है। वही आम आदमी उसका बड़ा खरीदार होता है। आम आदमी ही किसी को पूंजीपति बनाता है या कहिए कि आम आदमी का ष्षोषण करके ही कोई व्यवसायी पूंजीपति बनता है। अधिकतर ऐसा ही होता है भाई साहब। .... क्या कहा कि आम आदमी में इतनी ताकत है तो फिर वह इसका इस्तेमाल क्यों नहीं करता? आपका प्रश्न जायज है। आम आदमी में ताकत तो है पर हम आम आदमियों में कुछ कमजोरियां भी हैं जिन्हें दूर करना बहुत जरुरी है। पहली बात तो यह आम आदमी उच्च शिक्षित नहीं है। जिस कारण हमें अपने अधिकारों का ज्ञान नहीं है। दूसरी बात हम आम आदमियों में एकता नहीं है। तीसरे एक आम आदमी दूसरे आम आदमी के प्रति संवेदनशील नहीं है। हमें एकता की शक्ति का अहसास नहीं है। इस सौ-सवा सौ करोड़ के देष में यदि किसी अन्याय के विरुद्ध एक करोड़ लोग भी दिल्ली में एक साथ आकर अपनी आवाज बुलन्द कर दे तो हा-हाकर मच जाएगा। एक दिन में ही सारा सिस्टम अस्त-व्यस्त हो जाएगा। आप कल्पना कर सकते हैं कि दिल्ली की सड़को पर एक साथ एक करोड़ आदमी उतर जाएं तो क्या हालात होंगे। पर आम आदमी को इसके लिए शिक्षित, जागरुक और संगठित होने की जरुरत है। यदि ऐसा करके आम आदमी किसी भी अन्याय के विरुद्ध एक साथ आवाज उठाएगा तो सबको आम आदमी की अहमियत का पता चल जाएगा। इसलिए हम आम आदमी को सताने वालों/हमारा शोषण करने वालों एक बात जान लो कि ‘अतिशय रगड़ करे जो कोई अनल प्रकट चन्दन से होई’। हमें इतना मत सताओं कि हमारे भीतर आक्रोश का ज्वालामुखी जन्म ले। हमें आपको अपनी अहमियत का अहसास कराना पड़े।



संपर्क: मो. 9818482899, 36/13, ग्राउण्ड फ्लोर, ईस्ट पटेल नगर, नई दिल्ली-110008

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